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विकल हृदय में नेह तुम्हारा, बन कर अश्रु दिन रैन बहा
प्रिय तुमको जब हर्षित देखा, तब हृदय को मेरे चैन रहा
हाँ, तुम तो थीं सत्य सदा, मैं ही तुम जैसा बन ना सका
प्रिय तुमको जब व्यथित किया, तब मैं भी तो बैचैन रहा
जब व्यथित हृदय की पीड़ा को कभी व्यक्त न कर पाया
जब भी तुम मुस्काईं नहीं, मैं तुमसे अधिक हूँ पछताया
हर बार स्वयं को कष्ट दिया, जब भी कोई कटु बैन कहा
प्रिय तुमको जब व्यथित किया, तब मैं भी तो बैचैन रहा
हर बार चाहा कि झुक जाऊँ, पर अभिमान न झुक पाया
हर बार रोकना चाहा तुम्हें, ये समय न मुझसे रुक पाया
जब प्रिय तुमको रोते देखा तब सूखा न एक भी नैन रहा
प्रिय तुमको जब व्यथित किया, तब मैं भी तो बैचैन रहा
मिल न सके जब हम तुम दोनों, ..तब दोनों ही बैचन रहे
रोते – रोते सूख गए, जब प्रिय संग प्रियतम के नैन बहे
पल परिवत्सर से प्रतीत हुए, स्मृत ना कोई दिन रैन रहा
प्रिय तुमको जब व्यथित किया, तब मैं भी तो बैचैन रहा
__________________________अभिवृत
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